औरत, आदमी और छत , भाग 26
भाग,26
मिन्नी के शरीर में उठने की हिम्मत ही नहीं थी।कमला भी नहीं आई थी।
क्यों वीरेन की बातों का जवाब दिया मैने,पता नहीं कहाँ चले गए हैं। ओफ्फो क्या करूं मैं। तभी गेट खुलने की आवाज़आई थी, कोई आया है शायद। गाड़ी की आवाज़ तो न हीं है ,शायद कमला ही होगी।
कमला ।
जी दीदी आ ग ई हूं। खाना क्या बनाऊँ दीदी? साहब कहीं ग ए है।
हम्म ,कुछ भी बना लो कमला।
वो वीरेंद्र का फोन लगा रही थी,पर नहीं लग रहा था।परेशानी बढ़ ही रही थी। मिन्नी ने उठने की कोशिश की थी ,पर उससे उठा नहीं जा रहा था।पूरे शरीर में अजीब सी दर्द भरी अकड़न हो रही थी। क्या पता वीरेन खुद ही आ जायें, वैसे भी ये उनके पीने का समय होता है क्या पता उसी के लिए ग ए हों।पर एक घंटा हो गया है फोन भी नहीं उठा रहे हैं।मैं फिर कोशिश करती हूँ फोन की।उसने बगल में पड़ा फोन उठाया ही था कि फोन की घंटी बज उठी।
मैडम नमस्ते।
कौन बोल रहा है?
मैम वीरेन्द्र सर के आफिस से रोहित बोल रहा हूँ।मैम सर बहुत शराब पी चुके हैं,और बार बार और पी रहे हैं मैम उनको उल्टियां भी हो चुकी हैं पर मान नहीं रहे हैं।
रोहित तुम उनको घर छोड़ जाओ प्लीज, मेरी तबियत ठीक नहीं है, वरना मैं आ जाती।
मैम नहीं मान रहे मैं तो तब से घर के लिए ही कह रहा हूँ।मैम कुछ करें प्लीज़।
अच्छा तुम उनका ध्यान रखो मैं कुछ करती हूँ।
कमला,,आना एक बार प्लीज़।
क्या हुआ दीदी?
कोई आटो दिख रहा है क्या बाहर?
कहाँ जाना है दीदी?
साहब के आफिस से फोन आया है ,वहीं जाना होगा, ड्रिंक ज्यादा हो गया है उनका।
पर आपकी हालत तो ऐसी नही है दीदी।
पर तुम तो हो न मेरे साथ।
आप बैठें मैं आटो बुलाकर लाती हूं।
रात के आठ बज गए थे, कमला दस मिनट मे ही एक आटो लेकर आ ग ई थी। मिन्नी के बताये एड्रेस पर बीस मिनिट में ही पहुंच ग ए थे।कमला को नीचे ही छोड़ मिन्नी उपर ग ई थी।
बहुत बुरा हाल था शराब की दो बोतल खुली पड़ी थी।रोहित हाथ बांधे खड़ा था। मिन्नी को देखकर वह बोला,
सारी मैम आपको इस समय दिक्कत किया।
तुम्हें ड्राइविंग आती है, मिन्नी ने रोहित से पूछा था।
जी मैम।
चलो इन को नीचे उतरने में मदद करो।
जी मैम।
सुनिए चले घर चलें उठिए।
वीरेंद्र की हालत बहुत ही खराब थी ,किसी तरह वो गाड़ी तक लेकर आये, पिछली सीट पर वीरेंद्र को सभांले हुए मिन्नी बैठी थी।कमला आगे बैठ गई थी। उसे कोई होश.नहीं था। मिन्नी ने रोहित की मदद से उसे बैड तक ले गई थी।
रोहित ने गाड़ी की चाबी उसकी तरफ बढ़ा दी थी।
लौ मैम।
पर तुम कैसे जाओगे?
मैम आटो से चला जाऊँगा।
उसके जाने के बाद मिन्नी ने वीरेंद्र के कपड़ें बदले थे।उसके मुँह हाथ साफ करवाये थे। एक गिलास पानी में दो नीबूं निचोड़ कर उसे पिलाया था, बहुत ही मुश्किल से।कहाँ तो खुद से उठा नहीं जा रहा था और अब।
दीदी खाना खालो।
कमला तुम खा लो मेरी इच्छा नहीं है।
आप नहीं खायेंगी तो मैं भी नहीं खाऊँगी, आप ऐसी हालत में कैसे खाना छोड़ सकती हैं दीदी?चले उठें खाना खायें। कमला ने एक प्लेट में खिचड़ी डालकर उसको दे दी थी।
दीदी आप उस कमरे में साहब के पास ही सो जायें, उनकी हालत भी ऐसी है की अकेला नहीं छोड़ा जा सकता।
बात कमला की भी ठीक है,उसनें वीरेंद्र को पहले कभी यूं नहीं देखा था।
उसनें कमला को कहकर और नींबू पानी और बनवाया था,तभी शायद वीरेंद्र थोड़ा होश में आया था,उसनें देखाकि उसके मुँह की तरफ़ पानी का गिलास लिए उदास आँखों वाली मिन्नी बैठी है।
मरने दे न मुझे,.अब क्यों बैठी हो मेरे पास।
आप शान्त रहें और ये नींबू पानी पी लें।
मुझे नहीं चाहिए कुछ,चली जाओ यहाँ से।
वीरेन, प्लीज आप ये पी ले फिर मैं चली जाऊँगी।
वीरेंद्र ने उसके हाथ से गिलास पकड़ कर नीचे जमीन पर दे मारा था।
मिन्नी बीच के दरवाजे से दूसरे कमरे में चली गई थी,रात के ग्यारह बज चुके थे।वो चुपचाप डरी हुई सी सोफे पर अधलेटी सी थी, लेटे लेटे कब नींद आ ग ई पता ही नहीं चला। कमला बाहर बरामदे में सोई हुई थी।
कमला की खटर पटर से मिन्नी की आँख खुल ग ई थी,पर वो सीधे बाहर न जाकर वीरेंद्र के कमरे से होती हुई बाहर निकली थी।
दीदी मैं घर चली जाऊँ, बेटे का खाना बना कर उसे डयूटी भेज कर फिर इधर आ जाऊँगी। आँगन और बाहर की सफाई तो हो ही ग ई है।
कमला चाय पीकर जाना।
नहीं दीदी देर हो जायेगी, आप खाना मत बनाना, आराम करना, मैं आकर बना दूंगी।
मिन्नी ने ब्रश करके अपने लिए चाय बनाई थी।चाय पीकर
उसने अंदर थोड़ी झाड़पोंछ करनी चाही, पर ऐसा उस से नहीं हो पाया। वो बैठ गई थी । वो सोच रही थी एक बार स्कूल जाकर छुट्टियों की बात कर आती है। तभी अंदर से छीकने की आवाज़ आई थी।
उफ्फ़ वीरेंद्र को तो जुकाम हो गया है , उन्हें तो इस मौसम.में वैसे भी एलर्जी हो जाती.है,और कल रात को मैंने एक गिलास में तीन नींबू, पर मै भी क्या करती,शराब भी कितनी पी रखी थी,अब क्या करू?
तभी फिर से तेज तेज छीकने की आवाज आई थी, मिन्नी कमरे में आ ग ई थी, उसने एक छोटा टावल उस की तरफ बढ़ा दिया था।
आप ब्रश कर लें मैं चाय बना देती हूँ।
मुझे नहीं पीना कुछ,अपने लिए बना लो जो बनाना है।
नाराज हैं,मुझ से, ठीक है कोई बात नहीं पर चाय तो पीनी होगी न वरना जुकाम बहुत बढ़ जायेगा।मिन्नी ने वीरेन के बालों को सहलाते हुए कहा था।
चलो उठो ब्रश करलो,वरना खराब मुँह से चाय भी नहीं पी जायेगी।
वीरेंद्र बिना कुछ बोले बाथरूम की तरफ चला गया था।
मिन्नी चाय बना लाई थी उसनें चाय पकड़ा दी थी।
तभी मिन्नी का फोन बज उठा था,
नमस्ते मैम।
मैम मेरा तो एक ही ही टापिक बचा है, मैं आज ही आकर करा देती हूँ।क्योंकि मैम डिलीवरी डेट नजदीक होने के कारण डाक्टर ने अब बिल्कुल आराम के लिए बोल दिया है।
कोई बात नहीं मृणाली मैम,अगर आपने टापिक तैयार कर रखा है तो हम बच्चों को वो किसी अन्य टीचर से समझवा देंगें।
नहीं मैम आज तो मैं आ ही जाती हूँ, ये टापिक भी थोड़ा जरूरी है।मैं अभी एक घंटे तक पहुंच जाऊँगी।
कहकर उसने फोन रख दिया था।
आपको दवाई देदूं ।
तुम पहले अपने काम निपटा लो, मेरी तो देखी जायेगी।
वीरेन मुझे हर बार मत सुनाते रहा करो, मैं भी इंसान हूँ कोई रोबोट नहीं हूँ।
मिन्नी चुपचाप अपने कपड़े उठाकर बाथरूम चली ग ई थी। एक बैग में डाक्टर की सारी रिपोर्ट रख ली थी। उसनें चाय बना कर थर्मस में मेज पर रख दी थी,साथ में ही एलर्जी की गोली भी रख दीथी।
"आपके कपड़े निकाल दिये हैं, ये गोली भी रख दी है जो आप एलर्जी में लेते हैं, तुलसी की चाय बना कर रख दी है,और इस प्लेट में खोया है जो माँ ने भेजा था, मैं जा रही हूँ मेरा आटो आने वाला है।
वो निशब्द लेटा रहा था।मिन्नी चुपचाप चली गई थी। आज जाना जरूरी भी था, तन्ख्वाह जो मिलनी थी, रीति का खर्च भेजना था।कुछ ऐसे काम थे जो उसी ने ही करने थे,जो वो वीरेंद्र से नहीं कह सकती थीऔर कहने का शायद फायदा भी न हो।
उसने अपनी क्लास में बचा हुआ टापिक समझा दिया था, किसी भी समस्या के समाधान के लिए बच्चों को अपना नम्बर दे दिया था कि वो उसे मैसेज छोड़ दें। वो खुद उन्हें फोन कर लेगी।
उसके छहः महीने के कक्षा परिणाम और बच्चों की पढ़ाई के प्रति सर्मथन से न केवल बच्चे,उनके माता पिता संतुष्ट थे, बल्कि स्कूल प्रबंधन को भी महसूस हो गया था कि मृणाली को अपने स्कूल के लिए चुन कर उन्होंने कोई गलती नहीं की।
रीति की फीस भेज कर मिन्नी ने पाँच हजार रूपए कृष्णा आन्टी को दिए थे।
मिन्नी ये मुझे क्यों दे रही हो,अभी कुछ दिन पहले तो तुमने मुझे हजार रुपये दिये थे,और सारा सामान तुम खुद लाती हो।
अरे आन्टी ये पैसे, मैं आपको अपने लिए दे रही हूँ, पता न हीं मुझे कब क हाँ जरूरत पड़ जाये, मैं रोज बैंक तो नहीं जा सकती न।
आन्टी ने पैसे तो रख लिए थे,पर मिन्नी को लेकर एक चिंता भी हो ग ई थी।
मिन्नी खाना खालो,आज मैस में कड़ी चावल बने हैं, ले आऊँ, तुम्हें तो पंसद भी हैना।(पैसे देकर अध्यापक भी हास्टल मैस से खाना ले सकते थे)
आन्टी इच्छा ही नहीं है। मैं अब घर जाऊँगी।
मिन्नी आटो लेकर घर चली गई थी।गाड़ी नहीं थी,इसका मतलब घर पर नहीं थे वीरेंद्र।उसनें घर आकर मशीन में कपड़े डाल दिये थे, कमला को सफाई के लिए फोन कर दिया था,प्लेट में नाश्ता, और थर्मस में चाय खत्म थी , दवाई भी खा रखी थी।
तभी कमला ने आवाज़ दी थी।
सारे कपड़े क्यों धुल दिये दीदी ,पहले तो तबियत खराब हे।
जब जो काम हो जाये कमला वहीं ठीक है,अब तूं सफाई कर तब तक मैं नहाकर खाने की तैयारी करती हूँ।
खाना मैं बना देती हूँ दीदी,आप नहालो।
मिन्नी नहाने चली ग ई थी,कमला सफाई कर रही थी।
कमला मिन्नी जोर से चिल्ला यी थी।
क्या. हुआ दीदी?
मुझसे उठा ही नहीं जा रहा।
कमला भागकर बाथरूम के दरवाजे तक पहुंची थी,पर वो् अंदर से बंद था।
दीदी धीरे धीरे हाथ पैर हिलाते रहिए, अभी ठीक हो जायेगा।
अंदर से कराहने की आवाज़ आ रही थी।मिन्नी को गाहेबगाहे शरीर में ये दर्द भरी अकड़न सी हो जाती थी।फिर पाँच ,सात मिनिट में ही.ठीक होता था।
मैं यहीं खड़ी हूँ दीदी , अभी ठीक हो जायेगा।
कुछ समय बाद बाथरूम में हो रही हलचल से कमला को लगा था कि वो अब नार्मल है।
मिन्नी बाथरूम से बाहर आ ग ई थी।
डाक्टर ने आपको कहा था न कि ये सब कमजोरी के कारण होता है,.तो आप क्यों नहीं अपनी खुराक का ध्यान देती। कैसे चलेगा दीदी बच्चे को कैसे पालें गी।
नहीं कमला अब ध्यान रखूंगी, मेरी हालत तो कुछ ज्यादा ही खराब हो रही है। अच्छा सुनो चाय बना लो दोनों के लिए।
कमला ने चाय रख कर सब्जी काट दी थी। मिन्नी को भूख का अहसास हूआ तो उसने फ़्रिज में रखी थोड़ी मिठाई भी लेली थी।चाय पीकर उसनें पड़ोस के धोबी को कपड़े ले जाने के लिए फोन किया था।
मैडम कल दे जाऊँगा।
एक जोड़ी तो अभी दे जाना भैया प्लीज।
कमला रोटी मत बनाना मैं बना लूंगी।
मैं घर जा रही हूँ दीदी, कोई काम हो तो फोन कर लेना।
रात के नों बज गये थे,अभी वीरेंद्र नहीं आया था।उसने फोन किया तो फोन नहीं मिल रहा था।परेशान हो ग ई थी वो, क्या करे, क्या न करे।
तभी फोन की घंटी बजी थी,उसकी सास का फोन था।
उन्होंने बताया था, वीरू तो गाँव आया हुआ है।
उसे बहुत हैरानी भी हुई थी कि उसकी हालत की किसी को भी चिंता नहीं है।
ठीक है माँ आप आराम करें, मैं भी सोती हूँ, उसनें फोन काट दिया था।अपनें लिए रोटी बना कर उसनें खा ली थी।
सुबह उठ कर चाय ही पी रही थी कि .बाहर गाड़ी आकर रूकी। वीरेंद्र ही थे।उनके हाथ में दो बड़े डिब्बे थे,एक में तो शायद दूध था। दूसरे का पता नहीं।वो डिब्बे अंदर रख कर वो फिर बाहर गया था, गाड़ी मे से दो पोलीथीन निकाल कर ले आया था।
ये घी भेजा है माँ ने तेरे लिए, इस डिब्बे में दूध है,औरये पोलीबैग में एक डिब्बे में दही और चटनी है, दूसरी में मक्खन।
ठीक है।
रात को माँ से बात क्यों नहीं की तुमने, झगड़ा मुझ से था उन से नहीं, वो परेशान हो रही थी, कि क्या बात है.।
एक खामोशी, एक सन्नाटा।
मिन्नी ने धीरे धीरे उठ कर उस के लाये सामान को व्यवस्थित कर दिया था।
जब नहीं उठा जाता तो मुँह से नहीं बोल सकती मैं रख देता।
कोई जवाब नहीं था।
मिन्नी बेटा, ये कर्नल साहब की आवाज़ थी।
आ जाईये अंकल जी ,गुडमार्निंग
गुडमार्निंग बेटा, कैसी है।और भाई वीरेंद्र सिंह
नमस्कार अंकल।
सब बढ़िया अंकल आप बतायें।
इधर भी सब बढ़िया यंगमैन।
अंकल चाय लेंगे या काफी।
कुछ भी नहीं बच्ची,अभी चाय पीकर आया हूँ, तुम्हारी आंटी बोली कि पता करके आओ ,मिन्नी कैसी है ,दिवाली के बाद दिखी ही नहीं।
मैं मेरी आन्टी के घर चली ग ई थी अंकल, परसों ही आई हूँ, शाम को।
ओके ओके।
अंकल मैं किराये के पैसे आज दोपहर में दे जाऊँगी, मैं अभी बैंक नहीं जा पाई थी।
अरे मैं सुबह सुबह तुम लोगों का हालचाल लेने आया हूँ ,किराया नहीं,ठीक है ,मस्त रहो, खुश रहो।
अंकल,एक मिनिट, वीरेंद्र जेब से पैसे निकाल कर ले आया था।
अरे सुबह सुबह नहीं वीरेंद्र दिन में मिन्नी दे आयेगी, आन्टी को।
अंकल इस की अब तबियत ऐसी ही रहती है,चलने फिरने में उठने बैठने में दिक्कत बढ़ ग ई है।मैं भी अभी आफिस चला जाऊँगा।
तो बेटा अब तो इसे केयर की जरूरत है। तुम भी ख्याल रखा करो,मिन्नी का, बेचारी बहुत ही मेहनती और प्यारी बच्ची है।रात को जल्दी आ जाया करो, दिन में भी एकाध चक्कर लगा जाया करो घर का।
जी अंकल.
वीरेंद्र गेट बंद करके अंदर आ गया था।
मिन्नी ड्राईंग रूम में दीवान पर लेटी हुई थी।
तभी फिर घंटी की आवाज़ आई थी।
मैडम कपड़े ले लो।
आती हूँ।बहुत मुश्किल से सरक कर ग ई थी वो।
भाई, प्लीज वो सामने कुर्सी पर रख दो उसनें बरामदे की तरफ इशारा किया था। कितने पैसे हूए।
मैम नब्बे रुपये हो ग ए। चौदह कपड़े थे।
रूको मैं पैसे लाती हूँ।
मैम फिर हो जायेंगे,आप ठीक नहीं लग रही।
नहीं भाई , सुबह सबह खाली हाथ नहीं जाते।
मिन्नी ने पर्स से सौ का नोट निकाल कर उसे दे दिया था, वो दस रूपये वापिस कर के शुक्रिया बोल कर चला गया था।
तभी वीरेंद्र बाहर आया था,उसके हाथ में एक नोटों की गड्डी थी।
ये रख ले जरूरत पड़ सकती है।
आप ही रखें, मेरी कोई जरूरत होगी तो मैं देख लूंगी।
अरे मेरा मतलब है रीति की फीस वगैरह, भिजवा दो।
मैं भिजवा चुकी हूँ।
रख लो मिन्नी काम आयेंगे।
मुझे नहीं चाहिए, रखें आप।
भरेमन से मिन्नी वापिस अंदर चली ग ई थी।वो ,भी उसके पीछे अंदर आ गया था।
मैं हर वक्त घर पर नहीं होता, तुम मालकिन हो इस घर की, कोई जरूरत दूध, राशन, किराया, कामवाली,तो तुम्हारे पास ये सब होना चाहिए।
मिन्नी के दोनों हाथ जुड़ गये थे। मेरी कोई जरूरत नहीं है, वीरेंद्र जी,और गर कोई होगी तो मैं खुद पूरी कर लूंगी, प्लीज़।
मुझे आपसे कोई मदद नहीं चाहिए।
वो बाहर आ.गया था। मिन्नी सोच रही थी कि वीरेंद्र के जीवन में उसकी अहमियत कुछ भी नहीं है। जो अपनी बीमार बीवी को छोड़कर रात अपने गाँव में रहता है और बताता भी नहीं है।उस इंसान से क्या उम्मीद रखी जा सकती है।अंदर से फोन पर बात करनें की आवाजें आ रही थी।
मिन्नी ने कमरे के चारों तरफ निगाहें घूमा कर देखा, आज उसे किसी अपने की बहुत जरूरत थी, पर ऐसा तो कोई भी नहीं था। वो मानसिक रूप से बहुत परेशान थी।उसने अपना फोन.आफ कर दिया था,और दरवाजा बंद करके लेट गई थी।ऐसा क्यों होता है मेरे साथ,क्यों वो इतनी अकेली है,मुझ में ही कमी है,या मेरी तकदीर।है परवरदिगार मेरे गुनाह माफ करदो।
अपने गुनाह बख्शवाते पता नहीं उस को फिर वो बेहोशी जैसी नींद आ गई थी।
कमला ने क ई बार उस के फोन पर घंटी की पर फोन तो आफ था।
नमस्ते साहब ,दीदी कहाँ है।
उधर होगी।
कमला ने देखा मिन्नी ड्राईंग रूम में लगभग बेहोश सी पड़ी
है।
दीदी, दीदी।
कोई जवाब नहीं।
वो भागती हुई सी वीरेंद्र के पास पहुंची, साहब साहब, दीदी को क्या हो गया है, कोई जवाब ही नहीं दे र ही।
वो भागता हुआ सा उधर पहुंचा था।
मिन्नी ,मिन्नी।,
कमला ने उस पर पानी के छीटे डाले थे।
मिन्नी की आँख ऐसे खुली थी, जैसे कोइ क ई जन्मों से सोया हो और उठकर पहचानने की कोशिश कर रहा हो।उसका चेहरा ऐसा हो गया था, जैसे किसी ने सारा खून निचोड़ लिया हो।
दीदी क्या हुआ है आपको?
कुछ नहीं ठीक हूँ मैं।
कमला पानी ले आओ।चल खड़ी हो डाक्टर के पास चलते हैं।
मैं ठीक हूँ, आप परेशान न.हो, बस नींद आ गई थी।
कमला मिन्नी के लिए नींबू पानी ले आई थी।
बहुत परेशान कर दिया है कमला तुझे भी, माफ कर देना मुझे।
क्या बात करती हो दीदी, अपनी हालत देखी है। पता नहीं क्या होता जा रहा है आपको।
चल डाक्टर के पास चलते है।
कुछ नहीं, हुआ मुझे ।आप तैयार हो जायें मैं कमला को ले जाऊँगी साथ, डाक्टर के पास।
मैं बाद में चला जाऊँगा, पहले तुम्हें दिखा लाता हूँ।
क्या जरुरत है टाईम खराब करने की। मैं
चली जाऊँगी।
वीरेंद्र आफिस चला गया था।मिन्नी ने डाक्टर को अपनी हालत के बारे में फोन पर बताया था। डाक्टर ने उसे बुला लिया था। मिन्नी अपनी फाईल लेकर मेडिकल चली ग ई थी।
कुछ टेस्ट के बाद उसे वहीं दाखिल कर लिया था, मिन्नी ने स्पेशल कमरा ले लिया था,इसका किराया तो देना होता था,पर ये सफाई आदि के लिए बहुत बेहतर था। प्राईवेट नर्सिंग होम से तो बहुत ही किफ़ायती भी होता है सरकारी इलाज।
डॉक्टर ने कह दिया था कि किसी भी वक़्त ऑपरेशन करना पड़ सकता है।मिन्नी ने आज बैंक से पाँच हजार रूपए भी निकलवा लिए थे, किसी वक्त भी जरूरत पड़ सकती थी। वह आराम से इस कमरे के बैड पर लेट ग ई थी।फोन खोला तो खोलते ही कमला का फोन आ गया था। मिन्नी ने काटकर दोबारा फोन किया था.।
दीदी कहाँ हो, कैसी हो।
कमला मेडिकल में हूँ, डाक्टर ने दाखिल कर लिया है, दवाई भी दी है, अब ठीक हूँ।
खाना भी नर्स दे ग ई थी।आज वो दर्द भरी अकड़न भी नहीं हुई थी।शायद बदली दवा का असर था। शाम हो ग ई थी।पाँच बज ग ए थे, मिन्नी को चाय की तलब हुई थी।तभी कृष्णा आंटी भी आ ग ई थी, मिन्नी ने उन्हें फोन पर बता दिया था। आन्टी को ही बोला था कि दो अच्छी सी चाय बनवा लायें। आन्टी चाय भी बोल आई थी और उसका नम्बर भी ले आई थी।
वीरेंद्र जी कहाँ है, उनका पता है कि तुम मेडिकल में हो।
शायद नहीं, उनका फोन ही नहीं आया है।
तो तुम कर लेती बेटा।
पता नहीं आन्टी क्यों मुझे तो लगता है कि इस आदमी को मे री कोई परवाह ही नहीं, बस औपचारिकता ही निभा रहे हैं.।
कोई बात नहीं बेटा अधिक नहीं सोचते, ,क ई बार औपचारिकता में भी पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है, सामने वाले को भान भी नहीं होता।
यहाँ बात अपनी आत्मा की है ,अपने दिल की है,सामने वाला कहाँ से आ गया।
जब औपचारिक शब्द का प्रयोग करते हैं न बेटा तो दिल और भावनाओं को सहायक क्रिया के रूप में प्रयोग नहीं कर सकते। समझी।
चलो अब फोन करो और बताओ कि तुम को यहाँ दाखिल कर लिया गया है।
मिन्नी अभी तक आन्टी की फिलासफी को ही सोच रही थी, तभी उसकी सास का फोन आ गया था।
कहाँ हो मिन्नी कैसी हो।
ठीक हूँ माँ, मेडिकल में हूँ।
वहाँ क्या कर र ही हो।
दाखिल. हो ग ई हूँ माँ, डाक्टर ने कहा है, कभी भी ऑपरेशन करना पड़ सकता है।
वीरू से बात करवा।
वो यहाँ नहीं है माँ।अभी बताती हूँ उन्हें फोन करके।
वाह बेटी वाह, बहुत बढ़िया, प्यार करते थे न तुम शादी से पहले एक दूसरे को,और आज अपने दुख सुख भी एक दूसरे को नहीं बताते हो। यही है तुम्हारा रिश्ता।
ठीक है, माँ आप अपना ख्याल रखें। मैं आपको बता दूंगी, जो भी डाक्टर कहेंगी।
फोन उधर से ही कट गया था।
आन्टी आप जायें, आ प को देर हो जायेगी, सात बजने वाले हैं।
मिन्नी पैसे भी लाई हूँ, जरूरत होगी रख लो।
नहीं आन्टी मैने निकलवा लिए थे आज,आप रखे जब जरूरत होगी मैं फोन कर दूंगी।
आन्टी पैसे वापिस रखने के लिए बटुआ खोल ही रही थी कि एकदम दरवाजा खोलने की आवाज आई,और वीरेंद्र अंदर आ गया। वो बहुत उतेजित लग रहा था,पर आन्टी को देख कर वो सामान्य व्यवहार का लबादा ओढ़ने की कोशिश करने लगा।
ठीक है बेटा ,मैं चलती हूँ,अपना ध्यान रखना।
जी आन्टी।
वीरेंद्र ने भी हाथ जोड़ दिए थे।
आन्टी बाहर निकल ग ई थी।
यहाँ इस फटीचर मेडिकल में क्यों आई हो, जब मैंने बोला था कि यहाँ डिलीवरी नहीं करवानी।कल को कोई दिक्कत हो ग ई तो पर तुम्हें कौन समझाए। लगे रहो यहाँ लाईन में और मरते रहो ज़़िदगी की आस लिए।
अभी भी चलते हैं,चलो खड़ी हो जाओ।
यहाँ सब ठीक है,दोनों डाक्टर मेरी पहचान की हैं,और प्रसूति विभाग की मुख्य डाक्टर है,उन्होंने मुझे खुद कहा था कि मैं खुद सारा केस देखूंगी। बच्चों की डाक्टर उनकी दोस्त है। आज मैं उन्हीं के पास आई थी तो उन्होंने यहाँ दाखिल कर लिया।
मुझे फोन न करके माँ को बताया कि यहाँ हो।
मैंने किसी को फोन नहीं किया, सिवाय कृष्णा आन्टी के, उन को भी इसलिए कि वो मुझे कपड़े देकर जा सकें।
अच्छा ये बताओ और क्या सामान चाहिए, मैं ला देता हूँ।
कुछ भी नहीं चाहिए।मंगवा लिया है मैने जो जरूरत थी।
सुनो मिन्नी अब मेरे बच्चों के आने का वक्त है कम से कम अब तो मेरे साथ खुश दिखो, वरना वो भी ये सोचेंगे कि ये अच्छे माँ बाप हैं हमारे।
चलो साढे आठ महीने बाद सही आपके दिल म़े बच्चों को लेकर कोई भाव तो आया, वरना मुझे तो लगा था कि आप तो भावना शुन्य व्यक्ति हैं।
मौका नहीं छोड़ती हो सुनाने का।
कुछ गलत कह दिया क्या, जो भुगता है वही ब्यान कर रही हूँ। खैर मेरे हिसाब से आपको अब घर चले जाना चा हिए। रात हो ग ई है आप भी आराम करें।
दिमाग हिल तो नहीं गया है तुम्हारा, मैं तुम्हें यहाँ अकेले छोड़ कर जाऊँगा।पागल हो ग ई हो क्या।
यहाँ मैं अकेली नहीं हूँ पूरा मैडिकल स्टाफ है जो करना है उन्होंने करना है, आप तो वैसे ही परेशान होगें।
बकवास बंद करो,और ये बताओ खाने के लिए क्या ले आऊँ।
तभी एकदम जोर से चिल्लाई थी। आह, ,उफ़्फ़।
और वो एकदम से खड़ी हो ग ई थी।
वीरेंद्र उसकी तरफ लपका था,मिन्नी मिन्नी।
बाहर से नर्स भी अंदर आ चुकी थी,शायद उन्होंने भी उसकी
आवाज सुन ली थी। देखते ही देखते स्ट्रेचर भी आ गया था।
डाक्टर भी पहुंच चुकी थी।बाल रोग विशेषज्ञ भी आ ग ई थी। वीरेंद्र के हाथों में थमा मिन्नी का हाथ नर्स ने अलग कर दिया था,और वो लोग उसे लेकर ऑपरेशन थियेटर में चले गए थे।
वीरेंद्र कुछ परेशान कुछ बदहवास सा हो गया था।उसे पता नहीं क्यों वो उदास आँखों वाली मिन्नी बहुत याद आ रही थी।वो एक कोने में खड़ा हो गया था। दो वार्डबॉय आपस में बात करते हुए खड़े थे।
कोय वी आई पी ,केस था के।
नहीं पर उस से कम भी नहीं, ये लड़की एक पत्रकार है, इसने एक नारी संगठन के काले कारनामों का परदा पाश किया था।उस के लिए इसे छब्बीस जनवरी को राज्य पाल ने इनाम भी दिया था,और उस कांड में किसी आदमी ने अपनी हैड मैडम का भी नाम उछलवाया था।पर इस लड़की की रिपोर्ट ने सारे सच को उजागर कर दिया था, व मैडम पर लगा धब्बा भी साफ हो गया था।इस लड़की की वजह से से एक बारहा साल की लड़की बिकते बिकते बची थी।बहुत हिम्मत वाली छोरी है। जब हेड मैडम को ये पता चला कि इस की डिलीवरी यहाँ होनी हे तो उन्होंने सारे स्टाफ को सख्त निर्देश दे दिए थे,और वो खुद भी यहाँ पहुंच ग ई..
बच्चों की डाक्टर क्यों आई हे। क्या कोई ज्यादा दिक्कत हे।
हाँ सिस्टर बता रही थी जुड़वा बच्चे हैं और लड़की की भी हालत ज्यादा ठीक नहीं है।।
भाई मैं तो भगवान से यही माँगूं गा कि इस लड़की व इस के बच्चों को ज़़िदगी दे।वार्ड बॉय के हाथ जुड़ गए थे व नजरें आसमान की तरफ चली गई थी ।
इसके परिवार का कोई भी बंदा नहीं है साथ मे ,क्या बात।
पता नहीं भाई, सुबह जब दाखिल होने आई तो भी अकेली ही थी।
तभी आवाज आई थी, रतन ये इन्जेक्शन फटाफट।
वो दोनों आवाज़ की तरफ ही भाग ग ए थे।
वीरेंद्र कोने में खड़ा उनकी सारी बातें सुन चुका था।
आधे घंटे से उपर हो गया था,तभी बच्चे के जोर जोर से रोने की आवाज़ सुनाई दी।और फिर आवाज़े जोर पकड़ने लगी थी।वीरेंद्र के कदम उधर बढ़े थे,फिर बंद कपाटों ने जैसे उन्हें रोक दिया था।
तभी एक सिस्टर बाहर आई थी।वीरेंद्र को खड़े देखकर पूछा था, मृणाली मैडम के साथ हो क्या आप?
क्या लगती है आपकी?
बीवी है मेरी। क्या बात है मैम?
बेटा, बेटी हुए हैं, दोनो ठीक हैं पर मैडम सीरियस है।
मतलब?
आप किसी अच्छी जगह़ रैफर कर दे मैडम मैं ले जाता हूँ।
कहाँ ले जायेंगे, यहाँ से ज्यादा केयर उन्हें कहीं मिल ही न ही सकती,आप को पता है अंदर मेडिकल के कितने डाक्टर बुला रखे हैं हमारी हेड मैडम ने। आपकी बीवी है ही इतनी अच्छी कि सब उसके लिए प्रार्थना कर र हें है।
मैं देख सकता हूं उन्हें,
अभी नहीं, हाँ पर बच्चों को अभी नर्सरी में शिफ्ट करेंगे तो उन्हें देख लें आप।
वीरेंद्र को रह रहकर मिन्नी का रोता चेहरा और वो बात याद आ रही थी, भगवान करे डिलीवरी में मेरी जान निकल जाये और ये बच्चे आप को अकेले पालने पड़े।
परेशान से वीरेंद्र ने हाथ दिवार पर मारा था।
तभी एक सिस्टर आई थी, सर हम बच्चों को नर्सरी में शिफ्ट कर रहे हैं, आप बच्चों को देख ले।
दोनो बच्चे बहुत ही प्यारे हें रूई जैसे सफेद ,मुलायम, गोल मटोल।उसनें सहलाना चाहा था।
नहीं सर अभी आप इन्हें टच नहीं कर सकते।
क्रमशः
लेखिका, ललिता विम्मी
कहानी, औरत आदमी और छत
भिवानी, हरियाणा